हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, मशहूर कुरन के मुफस्सिर और तकलीद आयतुल्लाह जावादी आमोली ने लोगों से सही तरीके से बात करने और व्यवहार करने के विषय पर एक लिखित बयान में हज़रत अली (अ.स.) की एक हिकमत भरी रिवायत की रोशनी में अहम नुक्ते बयान किए।
उन्होंने फरमाया, अमीरुलमोमिनीन हज़रत अली (अ.स.) फरमाते हैं,ऐसी बात मत कहो जिसका तुम्हें इल्म नहीं, और अपने आप को उस बात के लिए परेशानी में मत डालो जिसके बारे में तुमसे सवाल नहीं किया गया और न ही तुम्हें उसकी ज़िम्मेदारी दी गई है।
रिवायत का अनुवाद और उस बात को छोड़ दो जिसका तुम्हें इल्म नहीं, और उस चीज़ में बोलने से परहेज़ करो जिसकी तुम्हें ज़िम्मेदारी नहीं दी गई।
आयतुल्लाह जावादी आमोली ने कुरान की सूरह इस्रा, आयत 36 का हवाला देते हुए कहा,और ऐसी बात के पीछे मत पड़ो जिसका तुम्हें इल्म नहीं, बेशक कान, आँख और दिल सभी से पूछताछ होगी।(सूरह इस्रा, आयत 36)
उन्होंने वज़ाहत की कि इंसान और उसके सभी अंग यानी आँख, कान, ज़बान और दिल क़यामत के दिन जवाबदेह होंगे।
इसलिए ज़रूरी है कि इंसान सिर्फ़ उसी बात को क़बूल करे जिसकी सच्चाई पर दलील मौजूद हो, और सिर्फ़ उसी बात की तख़्रीफ (खंडन) करे जिसकी ग़लती पर हुज्जत और दलील हो।
आयतुल्लाह जावादी आमोली ने आगे कहा,कुरान हमें यह सिखाता है कि न तो तस्दीक़ (सत्यापन) अंधा हो और न ही तकज़ीब (खंडन) जज़्बाती। दोनों सूरतों में अक़्ल, इल्म और दलील की रहनुमाई ज़रूरी है। यह इस्लाम की दो बुनियादी उसूली हिदायतें हैं।
उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि समाजी गुफ़्तगू और आम लोगों के रवैये में ज़िम्मेदारी और शऊर का होना बेहद अहम है, और हर शख़्स को चाहिए कि वह ज़बान, दिल और दिमाग़ के इस्तेमाल में तक़्वा, इल्म और बसीरत को मुक़द्दम रखे।
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